लोगों की राय

लेख-निबंध >> औरत का कोई देश नहीं

औरत का कोई देश नहीं

तसलीमा नसरीन

प्रकाशक : वाणी प्रकाशन प्रकाशित वर्ष : 2008
पृष्ठ :236
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 7014
आईएसबीएन :9788181439857

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

150 पाठक हैं

औरत का कोई देश नहीं होता। देश का अर्थ अगर सुरक्षा है, देश का अर्थ अगर आज़ादी है तो निश्चित रूप से औरत का कोई देश नहीं होता।...

औरतें अपने अत्याचारी-व्यभिचारी पति को तलाक़ क्यों नहीं दे देती?


दुनिया में सबसे ज़्यादा तलाक़ भारत में ही होते हैं। प्रति एक हज़ार दम्पतियों में कुल ग्यारह तलाक़! रूस में तलाक़ 65 प्रतिशत, स्वीडन में 64 प्रतिशत, बेल्जियम में 56 प्रतिशत, संयुक्त राज्य में 53 प्रतिशत और संयुक्त राष्ट्र में 5 प्रतिशत, और भारत में 1.1 प्रतिशत! उन सभी सभ्य देशों में, जहाँ औरतें शिक्षित, सचेतन और आत्मनिर्भर हैं, वहाँ तलाक़ की तादाद ज़्यादा है। यह सच्चाई हमेशा ही प्रमाणित होती रही है। पश्चिम में दी गयी गणना-रिपोर्ट में देखा गया है कि पहले विवाह में, पचास प्रतिशत तलाक़ की घटना घटती है। और पुनर्विवाह में साठ प्रतिशत! सवाल यह उठता है कि भारत में तलाक़ की संख्या इतनी कम क्यों है? इसका जवाब, बेहद आसान है। यहाँ पुरुषतन्त्र की जय-जयकार ज़्यादा है। यहाँ औरत को शिक्षित करने के बावजूद, उसे सचेतन नहीं होने दिया जाता। सचेतन भी होने दिया जाता है तो उसे आत्मनिर्भर नहीं बनने दिया जाता। आत्मनिर्भर भी बनने दिया जाता है तो उसे स्वाधीनता नहीं दी जाती। भई, जो चीज़ औरत की है, वह हाथ उठाकर उसे कौन देगा? देने का मालिक कौन है?-यह सवाल भी उठाया जा सकता है और इसका जवाब भी अत्यन्त आसान है। देने का मालिक है-मर्द और नारी-विरोधी पुरुषतान्त्रिक समाज! पुरुष और उसका तन्त्र अगर चाहता है, तो औरत को स्वाधीनता देता है अगर नहीं चाहता, तो नहीं देता। औरत की स्वाधीनता, औरत के पास नहीं होती। बल्कि मर्द की शर्ट-पैंट की जेब मंा या उन लोगों की मुट्ठी में होती है।

भारत उन्हीं अभागी औरतों का देश है, जिस देश में पति को तलाक़ देने की क्षमता, अन्य किसी भी देश की औरतों से कम है। इतना विशाल देश, इतने-इतने धर्म और संस्कृतियों के लोग, इतने मत, इतने पंथ के लोग, इतने रंग, इतने ढंग के लोग, इतने धनिक और इतने गरीब लोग यहाँ रहते हैं, यहाँ लोगों में दंगा-हंगामा, हिंसा-द्वेष, विरोध-विद्वेष तो लगा ही रहता है। यहाँ औरत-मर्द में आकाश-पाताल का वैषम्य होता है। इसके बावजूद तलाक के लिए इतनी उर्वर ज़मीन होते हुए भी, तलाक फल-फल क्यों नहीं रहा है? इसका भी आसान जवाब है! यहाँ औरतें शिक्षित नहीं हैं, सचेतन नहीं हैं, आत्मनिर्भर नहीं हैं, स्वाधीन भी नहीं हैं। बहुतों का दावा है, औरतें 'सब मिला है देश में रहती हैं यहाँ। लेकिन अकादमी में औरतें जो शिक्षा पा रही हैं, उसमें क्या मर्द-औरत के समान अधिकार की कोई शिक्षा शामिल है? इन्सान के तौर पर, अलग अस्तित्व के तौर पर औरतों को जो सम्मान मिलना चाहिए और उन्हें प्राप्त नहीं है, इस बारे में कोई तथ्य उन किताबों में दिया गया है? नहीं, नहीं दिया गया है। औरतों में सचेतनता कहाँ है? औरतें निर्यातित, निष्पेषित हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

    अनुक्रम

  1. इतनी-सी बात मेरी !
  2. पुरुष के लिए जो ‘अधिकार’ नारी के लिए ‘दायित्व’
  3. बंगाली पुरुष
  4. नारी शरीर
  5. सुन्दरी
  6. मैं कान लगाये रहती हूँ
  7. मेरा गर्व, मैं स्वेच्छाचारी
  8. बंगाली नारी : कल और आज
  9. मेरे प्रेमी
  10. अब दबे-ढँके कुछ भी नहीं...
  11. असभ्यता
  12. मंगल कामना
  13. लम्बे अरसे बाद अच्छा क़ानून
  14. महाश्वेता, मेधा, ममता : महाजगत की महामानवी
  15. असम्भव तेज और दृढ़ता
  16. औरत ग़ुस्सा हों, नाराज़ हों
  17. एक पुरुष से और एक पुरुष, नारी समस्या का यही है समाधान
  18. दिमाग में प्रॉब्लम न हो, तो हर औरत नारीवादी हो जाये
  19. आख़िरकार हार जाना पड़ा
  20. औरत को नोच-खसोट कर मर्द जताते हैं ‘प्यार’
  21. सोनार बांग्ला की सेना औरतों के दुर्दिन
  22. लड़कियाँ लड़का बन जायें... कहीं कोई लड़की न रहे...
  23. तलाक़ न होने की वजह से ही व्यभिचार...
  24. औरत अपने अत्याचारी-व्याभिचारी पति को तलाक क्यों नहीं दे देती?
  25. औरत और कब तक पुरुष जात को गोद-काँख में ले कर अमानुष बनायेगी?
  26. पुरुष क्या ज़रा भी औरत के प्यार लायक़ है?
  27. समकामी लोगों की आड़ में छिपा कर प्रगतिशील होना असम्भव
  28. मेरी माँ-बहनों की पीड़ा में रँगी इक्कीस फ़रवरी
  29. सनेरा जैसी औरत चाहिए, है कहीं?
  30. ३६५ दिन में ३६४ दिन पुरुष-दिवस और एक दिन नारी-दिवस
  31. रोज़मर्रा की छुट-पुट बातें
  32. औरत = शरीर
  33. भारतवर्ष में बच रहेंगे सिर्फ़ पुरुष
  34. कट्टरपन्थियों का कोई क़सूर नहीं
  35. जनता की सुरक्षा का इन्तज़ाम हो, तभी नारी सुरक्षित रहेगी...
  36. औरत अपना अपमान कहीं क़बूल न कर ले...
  37. औरत क़ब बनेगी ख़ुद अपना परिचय?
  38. दोषी कौन? पुरुष या पुरुष-तन्त्र?
  39. वधू-निर्यातन क़ानून के प्रयोग में औरत क्यों है दुविधाग्रस्त?
  40. काश, इसके पीछे राजनीति न होती
  41. आत्मघाती नारी
  42. पुरुष की पत्नी या प्रेमिका होने के अलावा औरत की कोई भूमिका नहीं है
  43. इन्सान अब इन्सान नहीं रहा...
  44. नाम में बहुत कुछ आता-जाता है
  45. लिंग-निरपेक्ष बांग्ला भाषा की ज़रूरत
  46. शांखा-सिन्दूर कथा
  47. धार्मिक कट्टरवाद रहे और नारी अधिकार भी रहे—यह सम्भव नहीं

विनामूल्य पूर्वावलोकन

Prev
Next
Prev
Next

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book